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प्राकृतिक आपदा नहीं, लापरवाही की देन कहिए…

Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
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उत्तराखंड में हुई त्रासदी के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वाला मनुष्य ही जिम्मेदार है। प्रकृति के संदर्भ में एक बात तय है कि इसके पास मनुष्य की जरूरत पूरी करने को तो जगह है पर यह किसी के लालच को पूरा नहीं करती। उत्तराखंड में हुई तबाही भी मनुष्य के लालच का ही नतीजा है। जानकारों का कहना है कि यह प्रदेश हल्के पर्वतीय क्षेत्र वाला है। परन्तु तमाम सुझावों के बाद भी यहाँ अनायास ही ठेरों विद्युत परियोजनाएँ बनाई गयीं। प्रकृति से छेड़छाड़ कर मनुष्य अपने लिए ही सकंट उत्पन्न कर रहा है। आँकड़े बताते हैं कि हर साल यहाँ 60 लाख पेड़ काटे जा रहे हैं। प्रत्येक वर्ष 2,000 हजार किलो विस्फोटक का प्रयोग सड़कों व बांध बनाने के लिए पहाड़ों को काटने में किया जा रहा है। विस्फोटक के प्रयोग से पहाड़ों की सहन शक्ति कम होती है। जिससे यह बादल फटने जैसी घटनाँओं को सहन नहीं कर पा रहे हैं। मनुष्य कैसे अपने लिए स्वंय विनाशलीला रचता है, उत्तराखंड में हुई तबाही इसका जीवंत उदाहरण है।
चारों तरफ हरियाली, ऊँची पर्वतमालायें, सुगंधित वातावरण यह दृश्य हमारी आँखों के सामने तब आ जाता है, जब उत्तराखंड का नाम लिया जाये। गत 15 जून से जो वहाँ हो रहा है, वह इस कल्पना से भिन्न है। एक प्रलय ने सब तबाह कर दिया। इसके आने की विभिन्न वजह बताई जा रहीं हैं। ईश्वरीय शक्ति के उपासकों का मत है कि यह विनाशलीला इसलिए हुई क्योंकि माँ धारी देवी की मुर्ति को उसके स्थान से हटाकर दूसरी जगह स्थापित किया गया। कहते हैं कि जब भी यहाँ इंसानों का दखल बढ़ता है तो माँ नाराज हो जाती हैं। माँ का महत्व इतना है कि चारों धाम के र्दशन को निकालने से पहले भक्त माँ के द्वार पर माथा टेकते हैं। प्रलय के चंद रोज पहले माँ की मुर्ति का स्थान परिवर्तित कर दिया गया, जिससे आहत माँ के क्रोध से यह घटना घटित हुई। दूसरा मत पर्यावरणविदों का है, इनके अनुसार उत्तराखंड में विकास जिस तेजी से हो रहा है वह इस प्राकृतिक आपदा का कारण है। कमजोर पर्वतीय क्षेत्र होने के बाद भी यहाँ क्षमता से अधिक 64 परियोजनाएँ लागू हैं। विस्फोटकों के अधिक प्रयोग ने इस क्षेत्र को कमजोर बना दिया है। पर्यावरणविदों की बात अनसुनी की जा रही है। उनके अनुसार इससे भी भयावाह घटना टिहरी बांध के टूटने से हो सकती है, जिसका प्रभाव दिल्ली में भी दिखेगा। पर इस ओर ध्यान देने का समय किसी के पास नहीं है। 2007 में आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बनने के बाद से इसकी एक भी बैठक नहीं हुई। यह दर्शाता है कि सरकार इस विषय पर कितनी लापरवाही बरत रही है।
एक अन्य और अधिक महत्वपूर्ण वजह मंदाकिनी के उत्तर की वजह अपने पुराने रास्ते यानि पश्चिम से निकलना बताया जा रहा है। अलकनंदा, मंदाकिनी, गंगोत्री, यमुना, भागीरथी जैसी नदियाँ जिस प्रदेश की शोभा हों। वहाँ मनुष्य को इसके निकलने के रास्ते पर मंजिलें खड़ी करना शोभा नहीं देता। जब बादल फटने जैसी घटना हुई तो मंदाकिनी जगह ना पाकर अपने पुराने मार्ग से निकल पड़ी और केदारनाथ की तबाही इसकी गवाह बनी। इनमें से वजह जो भी हो पर मनुष्य का बेवजह तीर्थ स्थान को पिकनीक स्पाॅट बना देना भी एक कारण है। इस तबाही के बाद जो दृश्य देखने को मिला, वह दिल दहला देने वाला था। इस घटना से जल्द और बेहतर तरीके से निपटा जा सकता था, यदि सरकार की नींद जल्दी टूट जाती तब। ऐसे प्रदेश में विद्युत परियोजनाओं के बनने से ज्यादा आवश्यकता अत्याधुनिक मौसम की जानकारी देने वाली डाॅप्लर रडार के बनने की थी। तबाही के बाद जिस तरह सेना के आने तक उत्तराखंड सरकार सोती रही, वह एक र्शमनाक बात है। इसके बाद जो समन्वय की कमी राहत कार्य को पूरा करने में दिखी वह चिंता का विषय है। पर सेना, आईटीबीपी, बीआरओ, एनडीआरफ के जवानों ने जिस गति से बचाव कार्य को तेजी दी, उससे हमें खुशी जरूर मिली।
कई लोगों के अपने इस तबाही में मारे गये, कई अब भी अपनों की तलाश में हैं और कुछ ने अपनी आँखों के सामने अपनों को मरते देखा। यह प्रलय एक विनाशकारी व रोम-रोम खड़ा कर देने वाली घटना है। पर अगर आपदा प्रबंधन विभाग सही समय पर चेत जाता तो तस्वीर कुछ और होती। उत्तराखंड सरकार की पोल तो खुल गई पर अफसोस इस बात का है कि इसके लिए तमाम जानें चली गयीं। इस समय उत्तराखंड में माहामारी और भुखमरी की स्थिति बनी हुई है। माहामारी का कारण इंसानों व जानवरों की लाशों का इस क्षेत्र में दबा होना है। सरकार का मानना है कि वह इससे निपटने को तैयार है। भुखमरी से बचाने के लिए राहत सामग्री तो है पर कुछ गाँवों तक पहुँचा नहीं जा सकता जिससे स्थिति बिगड़ रही है। इस बीच सियासत का दौर भी चल रहा है। नेता अपने-अपने राज्यों के लोगों को वहाँ से निकालने का क्रेडिट लेने के लिए आपस में लड़ रहे हैं जो एक र्शमनाक घटना है। हाल ही में ज़ौलीग्रांट एयरर्पोट पर टीडीपी व कांग्रेस नेता आपस में भिड़ गये। यह समय राजनीतिक रोटियाँ सेकने का नहीं है पर नेताओं के लिए तो ऐसे समय पर ही सियासत की राह खुलती है। इस विषय पर विपक्षी पार्टी बीजेपी जिस तरह शांति का सहयोग दे रही है, वह अवश्य ही सराहनीय है।
एकता के लिए पहचान रखने वाला भारत एक बार फिर अपनी इस साख को बचा ले गया, यद्यपि यह इतना आसान नहीं था। ऐसे समय में अपने भी साथ छोड़ दें तब हमें एकता की एक मिशाल देखने को मिली। लोग अपनी जान पर खेल कर दूसरों को बचाते रहे और ऐसे कुछ देश-भक्त शहीद भी हो गये। देशवासियों और सरकार को इस घटना से सबक लेते हुये नये पैमाने तैयार करने होंगे। किस क्षेत्र में किस गति से विकास हो, पर्यटन के लिए कितना बोझ प्रदेश पर डाला जाए? ये सारी बातें नये सिरे से सोचनी होंगी। उत्तराखंड त्रासदी में 1 लाख से ज्यादा लोगों को बचाया जा चुका है, लगभग एक हजार मारे गये व 3 हजार अब भी लापता हैं। यह अब तक का सबसे बड़ा बचाव अभियान है, जो सफल साबित हो रहा है। मैं तो मृतकों के परिजनों के लिए दुआ और जो फसे हैं उनकी सलामती के लिए प्रार्थना करता हूँ।

अभिजीत त्रिवेदी
कानपुर
7275574463

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