Menu
blogid : 13461 postid : 33

राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बीच की राजनीति

Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
  • 23 Posts
  • 45 Comments

देश में लोकसभा चुनाव के समय पूर्व होने की संभावना के कारण लगभग सारे राजनीति दल चुनाव के लिए कमर कसने को तैयार हैं। इसी क्रम में एनडीए की सहयोगी जनता दल (यूनाइटेड) भी मैदान में उतर पड़ी है। पर शायद जेडीयू ने चुनाव तैयारी के अपने कार्यक्रम में थोड़ा उतावला-पन दिखाया है और इसी के फलस्वरूप जेडीयू-भाजपा गठबंधन में तलाक हो गया। इस गठबंधन के टूटने की बड़ी वजह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का भाजपा चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया जाना बताया जाता है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मोदी का बिहार में चुनाव प्रचार मंजूर नहीं है। पर नीतीश भूल रहे हैं कि मोदी के नाम पर बीजेपी को ‘ना’ मंजूर नहीं है। इसका ताजा उदाहरण लालकृष्ण आडवाणी हैं। बीजेपी को खड़ा करने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले आडवाणी की जब नहीं चली तो सहयोगी दल के नेता के मोदी के खिलाफ उठने वाले स्वर कैसे स्वीकार हो सकते हैं! जदयू के आगे ना झुक कर भाजपा ने इसके साफ संकेत भी दे दिए हैं कि मोदी पर उसे कोई समझौता मंजूर नहीं है।
क्षेत्रीय दलों का राष्ट्रीय पार्टियों पर दबाब बनाना आम हो गया है। जैसी स्थिति इस समय भाजपा की है, कुछ महीने पहले ऐसी ही स्थिति कांग्रेस की भी थी। उस समय यूपीए की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस पर अपनी बात मनवाने का दबाब बनाये हुए थी। अंत में टीएमसी-कांग्रेस गठबंधन टूट गया। इससे एक चीज साफ झलकती है कि जो दल अपने राज्य में कई सालों से राज कर रहे हैं, वे अब केन्द्र की राजनीति में भी महत्वपूर्ण जगह पाने को लालायित हैं। सत्ता के इस मोह ने तीसरे मोर्चे, संघीय मोर्चे की राह तैयार कर दी है। अब इस राह पर चलने को कई गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई दल तैयार हैं। ऐसे किसी भी मोर्चे के सत्ता में आने के मौके कम ही हैं। इस मोर्चे की पहली चुनौती यह है कि इसका नेतृत्व कौन करेगा? दूसरा ऐसा कोई भी मोर्चा इससे पहले ज्यादा दिन सत्ता सुख नहीं भोग सका है। 1975 में आपातकाल के बाद जनता दल को सत्ता में आने का सौभाग्य मिला पर यह ज्यादा दिन नहीं रहा। इन कारणों से तीसरे मोर्चे का पक्ष कमजोर ही नजर आता है।
पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, तमिलनाडु, उ.प्र. ऐसे राज्य हैं जहाँ के सत्ताधारी दलों की निगाह अब केंद्र की राजनीति पर है। ये अब केंद्र में अपना दखल बढ़ाना चाहते हैं। इसी क्रम में जदयू और टीएमसी के बीच बातचीत का दौर जारी है। साथ ही ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजद और तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक से जदयू लगातार संपर्क बनाए हुए है। वामदल भी अब इस मोर्चे में शामिल होने को तैयार हैं। जबकि इनका गठन ही ऐसे किसी दल का सर्मथन ना करने के कारण हुआ था। तीसरे मोर्चे के सरोकार वे हैं जो जनता के हित को पीछे रख स्वंय के स्वार्थ को सिद्ध कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जदयू-भाजपा, टीएमसी-कांग्रेस गठबंधन के टूटने का सीधा असर इन राज्यों की जनता पर पड़ना तय है। कारण साफ है कि बिहार और बंगाल को बेहतर कानून-व्यवस्था एवं सुशासन एक अच्छे गठबंधन की सरकार होने से मिल रहा था, अब गठबंधन टूट जाने से लोगों का प्रभावित होना तय है। क्षेत्रीय दलों के सशक्त होकर केंद्र में आने का असर राष्ट्रीय पार्टियों पर भी पड़ेगा। उनका छोटी पार्टियों पर पहले जैसा दबाब नहीं रह जायेगा, जिससे उनका नुकसान होगा। इसलिए ये तीसरे मोर्चे को अस्तित्व में नहीं आने देना चाँहेगीं।
तीसरे मोर्चे या संघीय मोर्चे के सत्ता चला पाने पर अगर गौर करें तो ऐसा कोई मोर्चा मजबूत स्थिति में नजर नहीं आता। बहुमत के लिए जरूरी मत किसी के पास आते नहीं दिखते हैं। नीतिश, ममता, नवीन पटनायक के मतों की संख्या बहुमत से कोसों दूर है। यदि यह वामदलों का रुख करते हैं तो फिर सत्ता का मुखिया कौन के मुद्दे पर टकराव होगा। महाराष्ट्र से राकंपा ने अपना मुंह पहले ही फेर लिया है और शिवसेना-बीजेपी गठबंधन टूटने के आसार नहीं है। तमिलनाडु से द्रमुक और अन्नाद्रमुक साथ रह नहीं सकते। अन्नाद्रमुक अभी राजग से बाहर नहीं आना चाहता। ऐसे ही बिहार से राजद और जदयू के साथ आने की गुंजाइश कम ही है। इस स्थिति में देश की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाने वाले उ.प्र. पर निगाह है। सपा तीसरे मोर्चे में आने को तैयार है। सपा के इस व्यवहार से मोर्चे को बल जरूर मिलता है। पर अगर इसके अस्तित्व में आने की हकीकत को समझा जाए तो यह ज्यादा टिकाऊ नहीं दिखता। बहुमत हासिल करने के सपने को अगर सच भी मान लें तो इसके नेतृत्व की समस्या इसके टूटने का कारण बन सकती है। वैसे भी ऐसे मोर्चों ने अभी तक जनता के प्रति अपनी जबाबदेही तय नहीं की है, सिर्फ गठजोड़ के खेल में लगे हैं। इन सबके बीच देश की जनता के विकास के जरूरी मुद्दे नदारद हैं।
अभिजीत त्रिवेदी
कानपुर
7275574463

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply