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सुरक्षा और न्याय का ढुलमुल रवैया-2

Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
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बात अगर देश की सुरक्षा की हो तो यह एक बड़ा मसला है पर देश में इसके उलट कुछ और ही हालात हैं। बुधवार सुबह बेंगलूर में बीजेपी कार्यालय के बाहर हुए धमाके इस बात के गवाह हैं कि देश में सुरक्षा को लेकर हम कितने सजग हैं। अभी तक जो तथ्य सामने आए हैं उनसे तो यही पता चलता है कि यह पुलिस की लापरवाही का नतीजा है। कैसे कोई शख्स बेपरवाह अपनी मोटरसाइकिल छोड़ देता है और आधा घंटा गुजरने के बाद भी पुलिस का इस ओर ध्यान नहीं जाता। वैसे तो भारत में यह आम है कि कोई भी कहीं भी चीजें छोड़ के चला जाए, पर क्या यह सही है ? मुंबई, हैदराबाद, दिल्ली, लखनऊ, वाराणसी, सूरत, फैजाबाद जैसी तमाम जगहों पर भी ऐसी ही लावारिश चीजें घटना का कारण रहीं हैं फिर भी हम इस ओर ध्यान नहीं दे रहे क्यों ?
एनआईए, एटीएस, आइबी, राॅ वे एजेंसियाँ हैं जिनकी जिम्मेदारी इन मामलों में बढ़ जाती है। आइबी ने यह कहकर अपनी छवि और बिगाड़ ली है कि उसे बेंगलूर ब्लास्ट की कोई जानकारी नहीं थी। 26/11, हैदराबाद ब्लास्ट, गोवा ब्लास्ट जैसी तमाम घटनाओं के बाद एक तथ्य सामने आया कि इन घटनाओं की जानकारी खुफिया विभाग को समय रहते मिल जाने के बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए। 26/11 मामले की जाँच कर रही कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि खुफिया विभाग को इस घटना के बारे में कई सुराग मिले पर उन्होंने इससे संबधित विभाग को अवगत नहीं कराया। इससे इतर अगर घटना के बाद की बात करें तो यहाँ भी हाल वही है। पुलिस का घटना के घंटो बाद पहुँचना तो आम है ही, इनके कार्य करने का तरीका भी बेहद निराशाजनक है। इसका उदाहरण हाल ही में बिहार और पंजाब में पुलिस की बर्बता से स्पष्ट हो जाता है। सुरक्षा व्यवस्था के इस हाल ने तो अब एनएसजी, जेड प्लस सिक्योरिटी आदि पर भी संदेह उत्पन्न कर दिया है। घटनाओं की जाँच के लिए गठित एनआईए, एसटीएफ, सीबीआई आदि भी अपना कार्य ठीक प्रकार नहीं कर रहीं। जिससे किसी घटना का सच उजागर होने में सालों लग जाते हैं।
जाँच एजेंसियों में सबसे ज्यादा बदनाम सीबीआई है। इसके सरकार द्वारा चलित होने की खबरें आये दिन सुनने को मिलती हैं। हाल ही में कोयला आंवटन की जाँच रिपोर्ट मंे सरकार के इशारे पर फेरबदल की खबर ने एक बार फिर इसे सवालों के घेरे में ला दिया। हाल – फिलहाल कई नेताओं ने भी सरकार पर सीबीआई के गलत इस्तेमाल के आरोप लगाए हैं। इनमें सपा के मुखिया ने तो साफ तौर से कहा कि सीबीआई सरकार द्वारा र्निदेशित है। बाबा रामदेव ने तो सीबीआई को कांग्रेस बचाओ एजेंसी से परिभाषित तक कर दिया। इसकी लेट-लतीफी और लापरवाही के दो उदाहरण राजा भईया के खाद्य घोटाले की फाइनल रिपोर्ट का वर्षों बीत जाने के बाद भी ना आना और दूसरा मामला 1984 सिख दंगों के मुख्य आरोपी जगदीश टाइटलर के मामले में कोर्ट द्वारा दो बार लताड़ खाने के बाद भी ठीक रिपोर्ट ना पेश करना है। यह तो सिर्फ उदाहरण मात्र हैं, ऐसी अनेक घटनाएँ हैं जो इसकी कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े करती हैं फिर वो डीएमके का सरकार से समर्थन वापसी के अगले ही दिन सीबीआई का डीएमके प्रमुख के बेटे के घर छापा मारने का मामला ही क्यूँ ना हो।
कब तक अन्ना, केजरीवाल या फिर कैग प्रमुख विनोद राॅय जैसे लोग भ्रष्टाचारियों की पोल खोलते रहेंगे और ये एजेंसियाँ तमाशबीन बनी देखती रहेंगी ? देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, गिरती विकास दर के साथ क्या अब हमें सुरक्षा और जाँच एजेंसियों की लापरवाही से भी दो-चार होना पड़ेगा ? अगर इनसे अजीज आकर हम न्यायालयों की तरफ रूख करें तो यहाँ भी हालात बेहद निराश करने वाले हैं। न्यायाधीशों की कमी, अत्यधिक मामलों के चलते न्याय में देरी एक चिंता का विषय है। उदाहरण के तौर पर 1996 मे मोदीनगर ब्लास्ट के आरोपियों की सजा 17 साल बाद तय होना, चर्चित 1993 मुंबई ब्लास्ट का फैसला 20 साल बाद आ पाना हैं। फिर ये तो वे मामले हैं जिनमें आरोपी को दोषी करार दिया गया पर कई मामले ऐसे भी हैं जिनमें सालों जेल में रहने के बाद आरोपी को निर्दोष बता बरी कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में कोर्ट द्वारा निर्दोष करार देने के बाद भी समाज उसे स्वीकार नहीं करता, ऐसे में उसका जीवन नरक हो जाता है। कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें दोषी सालों से जेल में सड़ रहे हैं पर उनकी फाइल आगे नहीं बढ़ पा रही। इनमें दिल्ली घटना के आरोपी देवेंद्र सिंह भुल्लर, मुंबई ब्लास्ट के आरोपी जैबुन्निसा आदि नाम तो चर्चा का विषय हैं। अब तो इनकी सजा माफ करने को तमाम लोग आगे आ रहे हैं, इनमें पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष काटजू के नाम प्रमुख हैं। यदि किसी मामले का फैसला आने में दो दशक का समय लगता है तो यह शर्मिंदगी की बात है। देश के चार स्तम्भों में एक न्यायपालिका का यह चेहरा अशोभनीय है। इसमें सुधार की महती आवश्यकता है।
खुफिया विभाग, सुरक्षा एवं जाँच एजेंसियों व न्यायालयों की ऐसी कार्यप्रणाली निराश करने वाली है। ऐसे में देश की तरक्की का सपना सजोए देशवासी खुद को इनसे ठगा – सा महसूस कर रहे हैं। भ्रष्टाचार, कुशासन, मंहगाई से बेहाल लोग अब इन एजेंसियों से यह उम्मीद नहीं रखते हैं। देश की बेहतरी के लिए इनमें आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
अभिजीत त्रिवेदी
कानपुर
7275574463

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