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होली खेलें रघुवीरा अवध में …… अरे ! अरे ! पर अब तो अगर प्राण प्यारे रघुवीर निराले भी होली खेलने आए ना तो उन्हें भी इतने बंधनों में जकड़ दिया जाएगा कि उनका होली खेलने का विचार धरा का धरा रह जाएगा।
होली का नाम सुनते ही मन में अनेंको रंग, रंगों से रंगी हिंदी फिल्मों की नायिका और उसमें हीरो का उससे रोमांस और ठेरों उत्साहित करने वाले विचार एकाएक दिमाग में गूंज उठते हैं। लेकिन बदलते जमाने में होली खेलने का तरीका बदला है। सिर्फ रंग ही नहीं अब तो कीचड़ और खून की होली भी खेली जाने लगी है। इसे देखते हुए होली को आंनदमय बनाने के लिए कुछ चेतावनियाँ भी दी गईं, जिससे अब की बरस की होली थोड़ी फिकी पड़ सकती है। अब मेरे दोस्त को ही ले लो — आज मैं बैठा था कि तभी पीछे से उसने आकर कहा कि यार अब तो ये होली खेलना भी मुश्किल हो गया है। मैंने आश्चर्य की नजरों से देखते हुए उससे तबाक से पुछा, क्यों ? वो बोला कि आज मैंने अखबार में पड़ा कि शहर में पानी की किल्लत बढ़ती ही जा रही है इसलिए जलकल विभाग ने होली पर पानी बर्बाद ना करने की अपील की है और तो और होली के ठीक बाद बोर्ड एग्जाम हैं तो ज्यादा शोर-शराबा भी मना है। यार अब तुम ही बताओ कि ऐसी सूनी-सूनी होली कैसे एंज्वाय करूँ मैं ? मुझे उसकी बात का जबाब तो ना सूझा पर मैं उसकी बातों से चिंता में जरूर पड़ गया। घर में महीने के लास्ट में होली होने की टेंशन पहले से ही थी क्योंकि पापा को इस बार का होली बोनस अभी तक मिला नहीं था और घर पर होली की तैयारी के लिए सामान लाने की झझंट थी। मैं सोच ही रहा था कि इतने में पिछली होली की याद दिलाते हुए वो एक बार फिर बोला कि पिछली बार कैसे हम लोगों ने रंग भरे गुब्बारों से लोगों को नहलाया था और फिर डी.जे. पर थूम-थड़ाका याद है ना तुझे ? मैंने धीरे से रूखे स्वर में हाँ बोलते हुए उसकी बात का समर्थन किया।
मुझे रंगों की ठेरों थालियाँ, रंगों से भरी बाल्टियाँ और दोस्तों के रंगे-पुते चहरे याद आ गये और वो गोविंदा आला रे…., रंग बरसे भीगे चुनर वाली, डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली जैसे गानों पर थिरकते मेरे पैर याद आने लगे। तभी बीच में दोस्त ने मुझे हिलाते हुए कहा कि यार क्या होगा इस बार! मैंने कुछ बोलने से बेहतर चुप रहना ही समझा। इस बार मेरी चुप्पी उसे अच्छी नहीं लगी वो बोला- बैठ तू शांत अपने ख्यालों में, तू तो नीरस हो गया है बिल्कुल। बड़ा मोहल्ले का हीरो बनता है, तू तो एक प्राॅब्लम भी साॅल्व नहीं कर सकता। मैं चला और दोस्तों से इसका हल लेने। बात मेरी इमेज पर आन पड़ी तो मैंने उसे रोकते हुए कहा कि देख होली रंगो का खेल है। अब ये रंग गीले हो या सूखे क्या फर्क पड़ता है, वैसे भी पिछली बार वो चैधरी चाचा को जब हमारा पानी वाला गुब्बारा लग गया था तो ध्यान है ना कितना चिल्लाये थे वो। यार मुझे तो ये अबीर-गुलाल वाला इको फैंडली होली का आइडिया ही अच्छा लगता है। पानी भी बचेगा और रंग आँख में जाने या किसी की डाँट पड़ने का डर भी नहीं होगा। इससे वो संतुष्ट ना हुआ और हल्के स्वर में बोला कि रूल तो होते ही तोड़ने के लिए हैं। तब मैंने उससे पूछा कि मिया बिरादर अगर कोई तुम्हें ‘बुरा ना मानो होली है’ कहते हुए रंग के ड्रम में गिरा दे या गुब्बारें से मारे तो तुम्हें कैसा लगेगा? और वैसे भी जब देश में पानी का जल स्तर गिर रहा है तो देशहित में कुछ नहीं ये ही कर ले। इस बार वो संतुष्ट और दृढ़संकल्पित लग रहा था, उसने जोश के स्वर में कहा कि मैं समझ गया कि इससे हर साल होली पर बर्बाद होने वाले करोड़ो लीटर पानी में कुछ कमी जरूर आयेगी।
इतनी बातों का मतलब सिर्फ यह है कि होली महीने के लास्ट में पड़ रही हो, शोर-शराबा ना कर पायें, पानी की किल्लत क्यों ना हो फिर भी हम उत्साह के साथ, दूसरों को परेशानी में डाले बिना सावधानी से होली जरूर एंज्वाय करेंगे। तो उम्मीद है कि इस बार भी होली के दिन दिल खिलेंगे, रंगों में रंग जरूर मिलेंगे। हैप्पी होली…
अभिजीत त्रिवेदी
कानपुर
7275574463
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