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बदलते शादी के मायने

Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
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आज शादी दो दिलों, दो परिवारों के मिलन का प्रतीक नहीं रह गई है। अब शादी के मायने बदल रहे हैं। लोग अब शादी दहेज के लोभ में करते हैं और इन दहेजलाभियों का एक बड़ा वर्ग समाज के उस तबके से आता है, जो पढ़ा-लिखा, जिम्मेदार, समाज के निर्माण में योगदान देने वालों में गिना जाता है। ऐसा नहीं है कि समाज का हर पढ़ा-लिखा, जिम्मेदार व्यक्ति इस तरह का दहेजलोभी है। पर कहते हैं ना एक गंदी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। ठीक ऐसा ही यहाँ भी हो रहा है। इस प्रगतशील समाज में दहेज के भूखे कुछ भेडि़ये ऐसे मुँह फैलाये बैठे हैं, जैसे दहेज का पैसा इनका ही था पर इन्होंने कुछ सालों के लिए लड़की वालों को ब्याज पर दिया था। ब्याज पर इसलिए क्योंकि एक तो आप लड़की ले रहे हो ऊपर से आप पैसा भी लेते हो। दहेज के इन लोभियों ने समाज को कलंकित कर रखा है। इनमें से कुछ तो न चाहते हुए भी झूठी शान-ओ-शौकत के चलते दहेज की तरफ भागते हैं। क्योंकि अगर एक आम आदमी के लड़के की शादी में चार पहिया गाड़ी नहीं मिलती है, तो समाज क्या कहेगा का डर उसे दहेज की ओर खींच ले जाता है। यदि यह मांग पूरी नहीं हो पाती तो, शादी या तो बीच में ही तोड़ दी जाती है या फिर शादी के बाद लड़की को अनेक प्रताड़नाएं देते हुए मायके वालों से दहेज लाने की मांग की जाती है और यदि दहेज के भूखे इन भेडि़यों की मांग एक बार पूरी कर दी जाती है तो फिर दिनों-दिन इनकी ये नाजायज मांगंे बढ़ती ही जाती हैं। वहीं दूसरी ओर अगर इनकी मांग पूरी नहीं होती तो लड़की को या तो जला दिया जाता है या उसे इतना डराया-धमकाया जाता है कि वो खुद ही मौत को गले लगा लेती है। यह हमारे समाज की विडंबना ही है कि हमारे संस्कृति प्रधान भारत में इस तरह की घटनाएँ देखने को मिलतीं हैं।
इस आधुनिक होते दौर में इंटरकाॅस्ट मैरिज का प्रचलन भी तेजी से बढ़ा है, पर प्यार के कुछ दुश्मनों और समाज में बनावटी जिंदगी जीने वाले कुछ लोगों को यह तरीका पसंद नहीं है। जब कानून की किताब भी यह कहती है कि अगर लड़का और लड़की दोनों बालिग हैं, तो वे अपनी पसंद से शादी कर सकते हैं। तो फिर इन पर जबरदस्ती यह दबाब क्यों डाला जाता कि वे अपने पसंद की शादी न करें। या फिर इनके खिलाफ गाॅव या घर से बाहर निकालने का फरमान जारी कर दिया जाता है। कुछ जगहों पर तो ऐसे प्रेमियों को मौत से भी रूबरू होना पड़ा है। हाॅं, पर यदि इंटरकाॅस्ट मैरिज के प्रचलन में दहेज प्रथा अनिवार्य हो जाए, तो शायद यह बनावटी लोग इसे तत्काल स्वीकार लेंगे। इस वक्त की बड़ी विडंम्बना यह है कि इस आधुनिक समाज में आज भी कुछ लोग दहेजप्रथा की बीमारी से ग्रस्त हैं। यदि हमें इस बीमारी से समाज को मुक्त कराना है, तो पहले हमें खुद को बदलना होगा उसके बाद अपने आस-पास के लोगों में जागरूकता लानी होगी फिर एक साथ संगठित होकर इस समाज को दहेज मुक्त बनाने के लिए आगे आना होगा। तभी हम दहेज मुक्त समाज बना सकंेगे। यदि पहले हम खुद को दहेज मुक्त नहीं करेगें, तो ऐसे समाज की कल्पना भी बेईमानी है। फिर हम सिर्फ टी.वी. पर आने वाले शो में दहेजप्रथा पर दिखाए गए प्रोग्राम्स को देखकर खुद में दहेजलोभियों के खिलाफ आक्रोश के स्वर मुखर करते रहेंगे और कुछ ही दिनों में इन्हें भूल भी जायेंगे। इस लिए पहले खुद को बदलें, उसके बाद आगे बढ़कर समाज को दहेजमुक्त बनाने के मार्ग पर चल पड़े।
अभिजीत त्रिवेदी
कानपुर

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