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अंधविश्वास का नया घर

Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
Kalam mein mei jaan basti hai...bas ise mat todna
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अंधविश्वास की जो नींव मध्यकालीन भारत ने रखी थी, वो आज तक उतनी ही मजबूती से बनी हुई है। अंधविश्वास का जो खेल 17वीं व 18वीं शताब्दी में चलता था, वो अब भी बदस्तूर जारी है। लोग मानते हैं कि अंधविश्वास का मुख्य कारण अशिक्षा, जागरूकता की कमी है, पर अगर ‘टीमलीज‘ सर्विसेज की ‘‘सुपरस्टिशन्स एट द रेट आॅफ वर्कप्लेस’’ नामक रिपोर्ट का निष्कर्ष देखें तो पाया गया है कि भारत में निजी कंपनियों में काम करने वाले प्रंबधन पेशेवरों में 62 प्रतिशत लोग अंधविश्वासी हैं। वे अपने कार्य करने की जगह पर फेगं शुइ या वास्तुशास्त्र से जुड़ी चीजें, लाफिंग बुद्धा या कुछ ऐसा रखते हैं, जिसे वे शुभ टोटका मानते हैं। सर्वेक्षेण में यह भी पाया गया है कि देश के विकास और आधुनिकता के प्रतीक शहर-दिल्ली और बंगलूरू अंधविश्वास के गढ़ हैं। इससे यह साफ तौर पर पता चलता है कि देश का पढ़ा लिखा, आधुनिक माने जाने वाला वर्ग और खासकर युवा वर्ग अंधविश्वास की गिरफ्त में है। इसका मुख्य कारण लोगों का एकाकी होते जाना है। यही नहीं इंडियन क्रिकेट टीम के स्टार खिलाड़ी भी पक्के अंधविश्वासी हैं कोई मैदान पर उतरते समय अपने साथ लाल रूमाल ले जाता है तो कोई अपने मैच से पहले भगवान के दर पर देखा जाता है। ये तो हुआ धार्मिक आस्थाओं से जुड़ा अंधविश्वास।
बदलते जमाने के साथ ही अंधविश्वास का तरीका भी बदल रहा है। अब लोग सिर्फ धार्मिक चीजों में ही अंधविश्वास नहीं रखते वे खेल, राजनीति और तमाम क्षेत्र में भी अंधविश्वास करने लगे हैं। शायद इसीलिए 40 साल की दहलीज पर खड़े सचिन तेंदुलकर का बल्ला चाहें 1 साल तक क्रिकेट मैदान पर रन ना बनाये पर फिर भी वो इंडियन टीम में बने हुए हैं। ये है बदलते जमाने का अंधविश्वास कि एक ना एक दिन तो चलेगा ही इनका बल्ला, चाहें तब तक कितने ही मैच गवाँ दंे। कुछ ऐसा ही अंधविश्वास देश की जनता चुनाव के समय ऐसी पार्टियों पर करती है, जो पिछले कई वर्षों से जनता की आवाज को अनसुना करते चले आ रहे हैं, पर फिर भी जनता है कि अपना बहुमूल्य वोट उन्हें ही देगी। अंधविश्वास की फेहरिस्त में नया नाम सिनेमा के सितारों का जुड़ा है, जो अपनी फिल्म को 100 करोड़ के क्लब में देखने के लिए तमाम अंधविश्वास से परिपूर्ण काम करते हैं, कोई फिल्म के नाम का पहला अक्षर ‘के‘ से शुरू करता है, तो कोई फिल्म की शुरूआत गाने से करता है तो कोई अपनी हर फिल्म में एक निश्चित हीरोइन का दृश्य जरूर रखता है। अंधविश्वासियों की लिस्ट बहुत लंबी है। पर इन सब में जो बात सामने आती है वो है आज के आधुनिक समय में भी लोगों का अंधविश्वासी होना और इसमें भी बड़ी संख्या शिक्षित युवा वर्ग की होना।
खैर! मैं विश्वास करता हूँ कि मेरा ये लेख आपको पसंद आयेगा, अरे भाई! ये विश्वास है अंधविश्वास नहीं।
अभिजीत त्रिवेदी

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